Wednesday 15 August 2012

रमजान माह पर विशेष


माहे-रमजान में छुपा संदेश
आत्मा को पाकीजगी का मौका देता है रमजान


रमजान माह पर विशेष 
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बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाले पाक महीने रमजान की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं।

दौड़-भाग और खुदगर्जी भरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमजान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद करीब पहुंचा देती है।

दारुल उलूम देवबंद के मुहतमिम मौलाना अब्दुल कासिम नोमानी रमजान की फजीलत के बारे में कहते हैं कि इस माह में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिए भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है। बदले में अल्लाह अपने उस इबादत गुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है।

उन्होंने कहा कि इस्लाम की पांच बुनियादों में रोजा भी शामिल है और इस पर अमल के लिए ही अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है। खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में इस महीने का जिक्र किया है।

रमजान की विशेषताओं का जिक्र करते हुए नोमानी ने बताया कि इंसान के अंदर जिस्म और रूह है। आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबियत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है।

नोमानी ने बताया कि रमजान में की गई हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। साथ ही इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसी महीने में कुरान शरीफ दुनिया में नाजिल (अवतरित) हुआ था।

नोमानी ने कहा कि अमूमन 30 दिनों के रमजान माह को तीन अशरों (खंडों) में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत नाजिल करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है।

आजमगढ़ स्थित विश्वविख्यात इस्लामी शोधकार्य संस्थान दारुल मुसन्निफीन के उप प्रमुख मौलाना मुहम्मद उमेर अल सिद्दीक मौजूदा वक्त में रमजान के संदेश की प्रासंगिकता पर रोशनी डालते हुए कहते हैं कि आज का इंसान बेहद खुदगर्ज हो चुका है लेकिन रोजों में वह ताकत है जो व्यक्ति को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराती है।

मौलाना उमेर ने कहा कि रोजे बंदे को आत्मावलोकन का मौका देते हैं। अगर इंसान सिर्फ अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करें तो दुनिया से बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी। रमजान का छुपा संदेश भी यही है। (भाषा)

Monday 13 August 2012

अलविदा माहे रमज़ान

हजार महीनों से बढ़कर लैलतुल कद्र
अलविदा जुमा पर खास दुआएं

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रेहमतों, बरकतों, नमाजों, तिलावतों और इबादतों से सजा महीना रमजान पूरा होने को है। मस्जिदों में अदा की गई जुमा-तुल-विदा के बाद इस बात पर लोग गमगीन दिखाई दे रहे हैं कि रेहमतों का यह दौर अब थमने वाला है।

रमजान माह का अलविदा जुमा पूरी अकीदत और जोश के साथ मनाया गया। नमाज का खास सवाब होने की बात को ध्यान में रखते हुए बड़ी तादाद में मुस्लिम धर्मावलंबी निर्धारित समय से बहुत पहले मस्जिद पहुंचने लगे थे। धीरे-धीरे बढ़ती भीड़ का आलम यह हुआ कि नमाज के वक्त नमाजियों को मस्जिद के अंदर जगह नहीं मिल पाई। 

रमजान माह की 27वीं रात यानि शब-ए-कद्र 27 अगस्त को मनाई जाएगी। इस मौके पर मस्जिदों में खत्म-ए-कुरआन के आयोजन होंगे, तो कई जगह दुरूद, फातेहा होगी तथा लंगर वितरित किया जाएगा। मुस्लिम धर्मावलंबी सारी रात मस्जिद और घरों में इबादत कर गुजारेंगे।' 



हुजूर ने फरमाया कि 'रमजान के महीने में एक ऐसी रात है, जो हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है।' इस रात से मुराद लैलतुल कद्र है। जैसा कि खुद कुरआन मजीद में है कि 'हमने इस कुरआन को शब-ए-कद्र में नाजिल किया है और तुम क्या जानो कि शब-ए-कद्र क्या चीज है। शब-ए-कद्र हजार महीनों से ज्यादा बेहतर है।' कुरआन इंसान की भलाई और हिदायत का रास्ता दिखाने वाली किताब है।

सच्ची बात तो यह है कि इंसान के लिए इससे बढ़कर कोई दूसरी नेमत हो ही नहीं सकती। इसीलिए कहा गया है कि इंसानी तारीख में कभी हजार महीनों में भी इंसानियत की भलाई के लिए वह काम नहीं हुआ, जो इस एक रात में हुआ है। इस रात की अहमियत के अहसास के साथ जो इसमें इबादत करेगा, वह दरअसल यह साबित करता है कि उसके दिल में कुरआन मजीद की सही कदर और कीमत का अहसास मौजूद है। 

Monday 6 August 2012

सलाम औरत के हौसलों को

सलाम औरत के हौसलों को .
देखिये ओलिम्पिक की कुछ तस्वीरें 

Sunday 5 August 2012

खुदा की इबादत क्यों करना ?

खुदा की इबादत क्यों करना ?
तस्वीर क्या कहती है ?

Saturday 4 August 2012

माशा अल्लाह

यह तस्वीर वाकई देखने लायक है .
माशा अल्लाह .


Thursday 2 August 2012

औरत सही हो तो दुनिया को झुकना ही पड़ता है


एक औरत के उसूलों की जीत
सऊदी ख़ातून को हिजाब में जूडो में शिरकत की इजाज़त
विज्दान अली सिराज अब्दुर्रहीम शहरख़ानी (Wodjan Ali Seraj Abdulrahim Shahrkhani) सऊदी अरब की जानिब से शिरकत करने वाली पहली दो औरतों में शामिल हैं लेकिन लंदन में होने वाले हिजाब के खि़लाफ़ प्रदर्शन के बाद उन पर पाबंदी लगा दी गई थी। जिसके बाद विज्दान ने ओलिंपिक मुक़ाबलों में शिरकत करने से साफ़ इन्कार कर दिया था. जिस पर काफ़ी ग़ौर करने के बाद इन्टरनेशनल ओलिंपिक कमेटी और इंटरनेशनल जूडो फ़ेडरेशन ने उन्हें ख़ास डिज़ायन के हिजाब के साथ खेलने की इजाज़त दे दी है।